Friday, June 19, 2009

"एक अन्तहीन सिलसिला"


कोई मुझे बता दे कि ये क्या हो रहा है
पूरा देश समस्या के घेरे में रो रहा है
सुख के मायने बदल गये है
दुख के पॅमाने हिल गये है
धन और धान्य सुख हो गये है
आदर्श और संस्कार दुख बन गये है
भ्रष्टाचार जो कभी था ही नही
आज देश मे उससे बडा कोई है ही नही
भेंट और पुरस्कार आज कहीं नही है
रिश्वत और घूस से जगह कोइ अन्छुई नही है
बेटी आज बोझ है लक्ष्मी नही
दान आज दहेज है कन्या नही
भिखारी आज भिखारी है ही नही
बेगारी आज बेगारी दिखती नही
आज तो ये पेशे हो गये है
और जो थे पेशे वो कहीं खो गये हैं
भिखारियों की तो कमेटी बन रही
पर देश की सेनायें छिन्न-छिन्न हो रही
आज बालक हंस रहे और मां बिलख रही
धर्म और कर्म के द्वन्द ही नही
अराजकता की बयार हर ओर चल रही
सफलता की ऊंचाई और विफलता की दल दल
तो सब पहचान गये पर...
यथार्थ का धरातल ही हम भूल गये
वैज्ञानिक तो हम सभी हो गये
पर ज्ञान की परिभाषा ही भूल गये
अरे...
कोई मुझे बता दे कि ये क्या हो रहा है
पूरा देश समस्या के घेरे में रो रहा है.

Thursday, June 18, 2009

"समय का चक्र"


समय का चक्र बडा ही अनोखा है
कभी खुशियों की बेला है
तो कभी गमों का लगा मेला है
इसको कभी किसी ने क्या रोका है
हर जीव इसकी धुरि पर घूमा है
जीवन चक्र इसी के संग तो घूमा है
जो घूम गया इसके संग वो
पार कर गया जीवन समुंद्र है
जो पिछड गया बीच राह मे
डूब गयी उसकी नय्या है
समय का ये चक्र बडा ही अनोखा है
जीवन का हर पहलू इसी का झरोखा है
हर रंग जीवन का इसी से जुडकर तो देखा है
तभी तो हे बन्धु...
समय का ये चक्र बडा ही अनोखा है

Wednesday, June 17, 2009

"सफर नवोत्कर्ष का"


कुछ दूर हमारे साथ चलो
हम सारी कहानी कह देंगे
समझे ना जिसे तुम अब तक भी
वो बात यहां हम केह देंगे
एक दिन यादों के कोहरे में
वो बात पुरानी जाग उठी
तब परियन्त की उस चिंगारी से
मशालें नवोत्कर्ष कि रोशन हुई
उजागर हुई इस राह पर
कुछ नया करने की चाह जगी
तब लेकर मशाले हाथों में
प्रग्या परिवार के कदम बढ़े
कठिनाई ने हमको रोका भी
बंदिशो ने हमको टोका भी
पर...
हर कठिनाई को हमने पार किया
हर मुश्किल को संग में दूर किया
प्रतिति मे हमने पाठ पढ़ा
चाणक्य जी का सबब लिया
बेची जब चीजे खुद हमने यहां
तो बाजार का नया गुर सीखा
नव्याक्रति में दिखि क्रतियां नयी
एक बबात के दिखे पहलू कई
रंग बिखरे रचनाओं के
नये मनये विचारो को यहां रुपरेखा मिलि
संस्क्रति की जब झलकियां दिखी
गरबे में गुजरात के रंग बिखरे
डांडिये कि खनक ने सबको मोहा
वहीं...
देश की समस्याओं को हमने विचारा
शहिदो को यहां हमने पुकारा
और संग ही संग
मस्ती का खोला पिटारा
मचाकर बालिवुड बादशाह की गुमशुदगी का
बवंडर खूब सारा
यहां हमने खोला ग़्यान का पिटारा
उलेडा मस्ती का भंडारा
और...
दिन भर करके काम खूब सारा
शाम मे उडाया खाना खाजाना
अब हर चाह हमारी पूरी है
पर ग्यान की कडी अभी अधुरी है
होगा लक्ष्य पूरा तभी
जब हर पीढी इस परिवार की
लेकर मशाले हाथो मे
ये प्रग्या मंदिर ही नही
कर देगी उजियारा सन्सार मे
ळे हाथ हमारे साथ चलो
हम दुनिया रोशन कर देगे
कुछ दूर हमारे साथ चलो
हम सारी कहानी कह देंगे

"जीवनी"


सागर की गहराईयों से गहरा
आसमां की ऊंचाईयों से ऊंचा
नदियों की लंबाई से लंबा
दरिया के बहाव से तेज
पहाडो के ठहराव से ठहरा
पठार के समता से समतल
विचारों की उलझनों से घना
प्रभु की प्रतिमा से पवित्र
प्रेम भरे शब्दों से मीठा
नफरत रूपी विष से कडवा
पहली बार पंख़ पसारती तितली से मासूम
गर्म तपती आग से कठोर
मां की ममता से सलोना
पिता के आशिर्वादों से मजबूत सहारा
बिन बोले बालाक क़ी बातों से आनोखा
कुछ ऐसा ह् होता है...
खुद से खुद का रिश्ता
ये रिश्ता जिसकि बुनियाद
पल में गहरी और पल में खोखली है
बस्.. फर्क दिखता है कर्म में
ये रिश्ता...
जो आत्मविश्वास मे पनपता है
ये रिश्ता
जो ऊपर से बनकर आता है
जमीं पर रंग बदलता है
और फिर...
उसी दुनिया मे संग आत्मा के
चला जाता है
बस...आने जाने के इस फेरे में
एक जीवनी लिख जाता है.