
Tuesday, March 22, 2011
प्रकृति और नारी...

Saturday, March 19, 2011
फिर मिलूंगी ..

मैं' तुम्हे फिर मिलूंगी....
""कभी कभी...."
गीत जब सुनोगे,
शायर के लफ्जों में,
और दुनिया की भीड़ में,
जब तनहा महसूस करोगे ,
तब मैं सुनायी दूंगी,
हर गीत में, हर आवाज में,
मैं तुम्हे फिर मिलूंगी,
जब लम्बी सूनी रातो में,
तुम्हारी ऑंखें तरसेंगी,नींद को,
और में हवा के झोंके के तरह ,
तुम्हारे पलकों को बंद कर के,
तुम्हारे माथे पर एक प्यारा सा बोसा रख के,
उड़ जओंगी वापस अपनी दुनिया में..
मैं तुम्हे फिर मिलूंगी,
जब तुम भीड़ में असहज होगे
जब तुमको कोइ समझ नहीं पायेगा,
मैं चपचाप तुम्हारे हर दर्द को सोख लूंगी,
रूई के फायों के तरह......
मैं तुम्हे फिर मिलूंगी,
जब भी तुम्हारे होटों पर कोइ गीत आयेगा,
मैं सामने दिखाई दूंगी,
क्योंकी, सिर्फ मैंने सुना है तुमको,
गुनगुनाते हुए, गाते हुए
मैं तुम्हे फिर मिलूंगी,
जब तुम हँसना चाहोगे,
मैं कुछ बच्चों में शायद
नज़र आ जाउंगी तुम्हे,
कुछ अल्हड- कुछ बचकानी सी
बातें करत हुए,
मैं तुम्हे फिर मिलूंगी,
जब तुम आसमान में ऊँची उडाने भर रहे होगे,
बादलों के टुकड़े बन कर तुम्हारे साथ उडूँगी,
अनंत आकाश में....
वहां तक जहाँ तक तुम उड़ोगे
मैं तुम्हे फिर मिलूंगी...
ग़ज़नी की तरह भूली सी याद या,
एक आदत , बुरी ही सही..
याद आउंगी....तब......
मैं तुम्हे फिर मिलूंगी
कुछ हल्की सी खामोश साँसों मैं,
या हवा बन कर लिपट जाउंगी तुमसे,
के तुम्हे दुनिया की कोइ और हवा न छू सके,
तो क्या हुआ, तुम भूल गए,
चार दिन मैं, वो चार युगों की बातें,
जिसमे तुमने जिक्र किया था ,
कुछ भीनी सी भावनाओं का...
और मैं आज तक महकती हूँ,
सिर्फ तुम्हारी खुशबु मैं,
आज न सही....
एक दिन,
तुम्हे याद आउंगी मैं,
बहोत याद आउंगी...... है ना?