Wednesday, June 17, 2009
"जीवनी"
सागर की गहराईयों से गहरा
आसमां की ऊंचाईयों से ऊंचा
नदियों की लंबाई से लंबा
दरिया के बहाव से तेज
पहाडो के ठहराव से ठहरा
पठार के समता से समतल
विचारों की उलझनों से घना
प्रभु की प्रतिमा से पवित्र
प्रेम भरे शब्दों से मीठा
नफरत रूपी विष से कडवा
पहली बार पंख़ पसारती तितली से मासूम
गर्म तपती आग से कठोर
मां की ममता से सलोना
पिता के आशिर्वादों से मजबूत सहारा
बिन बोले बालाक क़ी बातों से आनोखा
कुछ ऐसा ह् होता है...
खुद से खुद का रिश्ता
ये रिश्ता जिसकि बुनियाद
पल में गहरी और पल में खोखली है
बस्.. फर्क दिखता है कर्म में
ये रिश्ता...
जो आत्मविश्वास मे पनपता है
ये रिश्ता
जो ऊपर से बनकर आता है
जमीं पर रंग बदलता है
और फिर...
उसी दुनिया मे संग आत्मा के
चला जाता है
बस...आने जाने के इस फेरे में
एक जीवनी लिख जाता है.
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Oh God bahut bhari poem likh daali h is baar to/.... sahi h...badhiya
ReplyDeleteyaar koi aisi bhi poem likh jis par mujhe comment karne ka mauka mile, compliment de kar to m thak gayi...