Wednesday, November 25, 2009

दिल की दीवारें


दिल की दीवारें
रेत की बनी है
सल्तनत इनकी रेत पर खडी है
गिराकर तो इनको कोई भी चल पडे
हल्का स झोंका भी मन्जर इनकी बर्बादी का पैदा कर बढे
पर...
रेत की इन दीवारो को करके खडा
घरोन्दा दिल मे बनाना है मुश्किल बडा
प्रेम के सलोने इत्र से महकता है ये
अपनेपन कि एक छुअन पर
बिफर जाता है ये
एक सन्ग पाने के लिये
बैर दुनिया से कर जाता है ये
एक वादा निभाने के लिये
कुर्बां खुद को कर जाता है ये
किसी के एक एह्सास के लिये
दुनिया का हर मन्जर अलग सा नजर आता है इसे
पर...
जब कोई परिस्थिति झोंका
इस रेत की दिवार को गिरा जाता है
तो बस एक बैरागी
उस रेत में अपनी विलिनता को तलशता है
ओर हर कोशिश मे जब उस रेत को अपनी मुट्ठी से फिसलता देखता है
तो हर तलाश के अन्त मे बस
अपनी ही आरजु की लाश से घिरकर
खुद को अपनी हर लाचारी पर रोता पाता है.