Wednesday, November 25, 2009

दिल की दीवारें


दिल की दीवारें
रेत की बनी है
सल्तनत इनकी रेत पर खडी है
गिराकर तो इनको कोई भी चल पडे
हल्का स झोंका भी मन्जर इनकी बर्बादी का पैदा कर बढे
पर...
रेत की इन दीवारो को करके खडा
घरोन्दा दिल मे बनाना है मुश्किल बडा
प्रेम के सलोने इत्र से महकता है ये
अपनेपन कि एक छुअन पर
बिफर जाता है ये
एक सन्ग पाने के लिये
बैर दुनिया से कर जाता है ये
एक वादा निभाने के लिये
कुर्बां खुद को कर जाता है ये
किसी के एक एह्सास के लिये
दुनिया का हर मन्जर अलग सा नजर आता है इसे
पर...
जब कोई परिस्थिति झोंका
इस रेत की दिवार को गिरा जाता है
तो बस एक बैरागी
उस रेत में अपनी विलिनता को तलशता है
ओर हर कोशिश मे जब उस रेत को अपनी मुट्ठी से फिसलता देखता है
तो हर तलाश के अन्त मे बस
अपनी ही आरजु की लाश से घिरकर
खुद को अपनी हर लाचारी पर रोता पाता है.

Wednesday, September 23, 2009

बोझ...


कोई खुशियों का
काफिला लेकर चलता है
कोई पूरी जिन्दगी बनकर
खुशियो की बस्ती का बाशिन्दा
गुजार देता है
मै तो बस चली थी
मुटठी भर खुशियां लेकर
एक छोटी सी पोटली मे
जरा सा बोझ खुशियों का लादकर
खुशियों के इस थोडे से
बोझ तले कान्धा झुकाकर
एक अलग सा नज़रिया लेकर
जीवन की दौड मे
मै भी भाग चली थी...
जाने कब कान्धा सीधा हो गया
कशमकश में
अश्को से मेरा आंचल गीला हो गया
वो जरा सा बोझ जाने कँहा मुझसे छूट गया
खुशियों का वो साया जाने कब
मेरे साये से रुठ गया
वो अलग सा नज़रिया
मेरी आँखों के समन्दर में
मेरे ही अश्कों से डूब गया
उस बोझ की जुदाई में
जीवन ही बोझ बन गया...

Tuesday, July 28, 2009

"बचपन"


मासूम सा बचपन
कितना सलोना होता है
कुछ भी ना जानते हुए भी
कितना अनोखा होता है
ढेरों सपने बुनता है
रंग बिरंगी रचनाये रचता है
ढेरो रंगो से भरा ये बचपन
दुनिया के भद्दे पहलू से
बिल्कुल अन्जान होता है
अपनी ही धुन मे मगन
बचपन कितना बेफिक्र होता है
पर...
इस बचपन से जुडा
परिस्थितियों का भी खेला होता है
इस रंगीन बचपन मे रंग भरने वाली कुन्जी
हालात की कठपुतली होती है
लेकर जीवन के भिन्न भिन्न रंग
जब ये कुन्जी घूमती है
तब अनुकूल परिस्थिति मे
संग मासुमियत के
खुशियों के रंग भर देती है
और किस्मत को ये कुन्जी
चमकीले रंगो से सजा देती है
पर वही जब ये कुन्जी
प्रतिकूल परिस्थिति मे आगे बढती है
तो संग मासुमियत के
लाचारी की रेखायें खीच देती है
और किस्मत को ये कुन्जी
मजबूरियों के गारा से पोत देती है
और इस तरह्...
रुप किस्मत्त का
बदकिस्मती मे तब्दील कर देती है!

Friday, June 19, 2009

"एक अन्तहीन सिलसिला"


कोई मुझे बता दे कि ये क्या हो रहा है
पूरा देश समस्या के घेरे में रो रहा है
सुख के मायने बदल गये है
दुख के पॅमाने हिल गये है
धन और धान्य सुख हो गये है
आदर्श और संस्कार दुख बन गये है
भ्रष्टाचार जो कभी था ही नही
आज देश मे उससे बडा कोई है ही नही
भेंट और पुरस्कार आज कहीं नही है
रिश्वत और घूस से जगह कोइ अन्छुई नही है
बेटी आज बोझ है लक्ष्मी नही
दान आज दहेज है कन्या नही
भिखारी आज भिखारी है ही नही
बेगारी आज बेगारी दिखती नही
आज तो ये पेशे हो गये है
और जो थे पेशे वो कहीं खो गये हैं
भिखारियों की तो कमेटी बन रही
पर देश की सेनायें छिन्न-छिन्न हो रही
आज बालक हंस रहे और मां बिलख रही
धर्म और कर्म के द्वन्द ही नही
अराजकता की बयार हर ओर चल रही
सफलता की ऊंचाई और विफलता की दल दल
तो सब पहचान गये पर...
यथार्थ का धरातल ही हम भूल गये
वैज्ञानिक तो हम सभी हो गये
पर ज्ञान की परिभाषा ही भूल गये
अरे...
कोई मुझे बता दे कि ये क्या हो रहा है
पूरा देश समस्या के घेरे में रो रहा है.

Thursday, June 18, 2009

"समय का चक्र"


समय का चक्र बडा ही अनोखा है
कभी खुशियों की बेला है
तो कभी गमों का लगा मेला है
इसको कभी किसी ने क्या रोका है
हर जीव इसकी धुरि पर घूमा है
जीवन चक्र इसी के संग तो घूमा है
जो घूम गया इसके संग वो
पार कर गया जीवन समुंद्र है
जो पिछड गया बीच राह मे
डूब गयी उसकी नय्या है
समय का ये चक्र बडा ही अनोखा है
जीवन का हर पहलू इसी का झरोखा है
हर रंग जीवन का इसी से जुडकर तो देखा है
तभी तो हे बन्धु...
समय का ये चक्र बडा ही अनोखा है

Wednesday, June 17, 2009

"सफर नवोत्कर्ष का"


कुछ दूर हमारे साथ चलो
हम सारी कहानी कह देंगे
समझे ना जिसे तुम अब तक भी
वो बात यहां हम केह देंगे
एक दिन यादों के कोहरे में
वो बात पुरानी जाग उठी
तब परियन्त की उस चिंगारी से
मशालें नवोत्कर्ष कि रोशन हुई
उजागर हुई इस राह पर
कुछ नया करने की चाह जगी
तब लेकर मशाले हाथों में
प्रग्या परिवार के कदम बढ़े
कठिनाई ने हमको रोका भी
बंदिशो ने हमको टोका भी
पर...
हर कठिनाई को हमने पार किया
हर मुश्किल को संग में दूर किया
प्रतिति मे हमने पाठ पढ़ा
चाणक्य जी का सबब लिया
बेची जब चीजे खुद हमने यहां
तो बाजार का नया गुर सीखा
नव्याक्रति में दिखि क्रतियां नयी
एक बबात के दिखे पहलू कई
रंग बिखरे रचनाओं के
नये मनये विचारो को यहां रुपरेखा मिलि
संस्क्रति की जब झलकियां दिखी
गरबे में गुजरात के रंग बिखरे
डांडिये कि खनक ने सबको मोहा
वहीं...
देश की समस्याओं को हमने विचारा
शहिदो को यहां हमने पुकारा
और संग ही संग
मस्ती का खोला पिटारा
मचाकर बालिवुड बादशाह की गुमशुदगी का
बवंडर खूब सारा
यहां हमने खोला ग़्यान का पिटारा
उलेडा मस्ती का भंडारा
और...
दिन भर करके काम खूब सारा
शाम मे उडाया खाना खाजाना
अब हर चाह हमारी पूरी है
पर ग्यान की कडी अभी अधुरी है
होगा लक्ष्य पूरा तभी
जब हर पीढी इस परिवार की
लेकर मशाले हाथो मे
ये प्रग्या मंदिर ही नही
कर देगी उजियारा सन्सार मे
ळे हाथ हमारे साथ चलो
हम दुनिया रोशन कर देगे
कुछ दूर हमारे साथ चलो
हम सारी कहानी कह देंगे

"जीवनी"


सागर की गहराईयों से गहरा
आसमां की ऊंचाईयों से ऊंचा
नदियों की लंबाई से लंबा
दरिया के बहाव से तेज
पहाडो के ठहराव से ठहरा
पठार के समता से समतल
विचारों की उलझनों से घना
प्रभु की प्रतिमा से पवित्र
प्रेम भरे शब्दों से मीठा
नफरत रूपी विष से कडवा
पहली बार पंख़ पसारती तितली से मासूम
गर्म तपती आग से कठोर
मां की ममता से सलोना
पिता के आशिर्वादों से मजबूत सहारा
बिन बोले बालाक क़ी बातों से आनोखा
कुछ ऐसा ह् होता है...
खुद से खुद का रिश्ता
ये रिश्ता जिसकि बुनियाद
पल में गहरी और पल में खोखली है
बस्.. फर्क दिखता है कर्म में
ये रिश्ता...
जो आत्मविश्वास मे पनपता है
ये रिश्ता
जो ऊपर से बनकर आता है
जमीं पर रंग बदलता है
और फिर...
उसी दुनिया मे संग आत्मा के
चला जाता है
बस...आने जाने के इस फेरे में
एक जीवनी लिख जाता है.

Monday, May 18, 2009

अनोखापन...


जीवन के इस दौर में
कई राह अनोखी है
भीड को चीरती हर एक
तन्हाई अनोखी है
कहीं शोरगुल का समां है
तो वहीं खामोशी की खुमारी अनोखी है
खुशियों के काफिले में
पांव पसारती गम की परछाई अनोखी है
विश्वास की परम्परा में
शकों की गुंजाइश अनोखी है
मधुर शब्दों की फैलती मिठास में
कटु लफ़्जों की चुभन अनोखी है
हर पल से दि्खती उम्मीद की किरण में
नाउम्मीदगी की वो धुंध अनोखी है
हर नये सवेरे की उजली शिखा मे
कुचली शिखा की कालिमा अनोखी है
सफलता की ऊंचाईयों में
विफलता की एक दल-दल भी अनोखी है
मिलन की ठंडी बयार में
वियोग की वो उमस अनोखी है
और जीवन के सलोने रूप में
मौत कि वो कुरूपता भी तो अनोखी है
तभी तो...
जीवन के इस दौर मे दिखती
हर राह अनोखी है.

जिन्दग़ी...


कैसी पहेळी है
जिन्दग़ी...
जाने कितनो क़ी सहेळी है
जिन्दग़ी...
फिर भी हर दौद मे अकेळी है
जिन्दग़ी...
हर सवाल का जवाब है
जिन्दग़ी...
फिर भी सबसे बडा सवाल है
जिन्दग़ी...
हर दौराह से गुजरती है
जिन्दग़ी...
फिर भी बहुत अन्जानी सी है
जिन्दग़ी...
खुशियां आंचल में भरे, गम दामन में छुपाये है
जिन्दग़ी...
फिर भी हर रस से परे है
जिन्दग़ी...
हर सूरत में बसी है
जिन्दग़ी...
पर सब रुपों से ऊपर है
जिन्दग़ी...
दिखती बहुत्त कठिन पहेली है
जिन्दग़ी...
पर नहीं अबूझ पहेली है
जिन्दग़ी...
सो चाहे हों खडे सवाल ... कितने भी
हर सवाल जवाब से दूर है
जिन्दग़ी...

Wednesday, April 1, 2009

खुशनसीबी


अपने भावों को क्या कोई आज तक शब्दों में ढाल पाया है?
हर इच्छा कोइ अप्नी क्या कोई जाहिर कर पाया है?
हर चाह को दिल की, क्या कोई जता पाया है?
हां, हर किसी ने भावों की रूपरेखा को चेहरे पर उबारा है
पर कितने खुशनसीबों ने कण्ठ से अपनी जुबां पर इसे उतारा है?
हर किसी ने इच्छा को अपनी,
ऑंखों की चमक या नेत्रों के अश्कों मे ढाला है
पर कितने खुशनसीबों ने इसको जीवन के पलों में ढूंढ निकाला है?
दिल मे हुई हर आहट को हर किसी ने स्वयम मे गूंजता पाया है
पर कितने खुशनसीबों ने इसको जिन्दगी की धुन के संग बजाया है?
और ऐ जिन्दगी जीने वालों...
जरा उन खुशनसीबों को ढूंढ निकालो
जिन्होने जिन्दगी की इस खुशनसीबी को उम्र भर सम्भाला है

आशा और तमन्ना


बुलन्दियों के उस आसमान को छूने की आशा है
खुद को उस मुकाम पर पाने की इच्छा है
जहां ख्वाबों मे भी लोग जा नही पाते
परिन्दे भी जहां तक उड नही पाते
ऐसी ऊंचाईयों पर अपना जहां बनाने की इच्छा है
बान्ध कर अनोखे प्रयासों की डोर
देख कर अब उन ऊंचाईयों की ओर
एक सलोना जहां बनाने की इच्छा है
पर इस इच्छा मे एक तमन्ना का भी हिस्सा है
जिसमें इस घरोंदे को समुद्र की गहराइयो से सजाने की आशा है
जानती हूं दोनो मे एक प्रबल विमुखता है
पर दोनो एक दूजे का ही तो हिस्सा है
बिना एक के दूजा अधूरा है
करने को इसे पूरा,
बांधनी है प्रयासो की एक ऐसी डोर
ज कर सके खड़ा एक दर्पण ऐसा
जिसमे दिखे धरती और गगन एक ओर

Monday, March 30, 2009

मां...


क़ुहासे की ऊची दीवारो से झाकती एक छवि
धुन्ध की मोटी परत को तोड़्ती एक किरण
परेशानियो की तेज धार को चीरती एक नैया
आग की तेज तपन को हटाती एक ठन्डक
आन्सू भरी आन्खो मे उभरी सांत्वना की एक तस्वीर
हर दर्द की आह के पीछे खुशी की आवाज
हर परेशानी मे लड़ने की हिम्मत
हर गलत कदम के पीछे सही राह दिखाती एक पथ प्रदर्शक
हर सुख दुख को बांटती एक सखी
जीवन पाठ सिखाती एक गुरु
हां...
हर तकदीर से झांकती एक तस्वीर है
मां...
जिसकी हर दुआ मे बसी मेरी खुशी है
जिसकी आंखो से झलकती तस्वीर मेरी है
जिसकी छवि मे दिखता अस्तित्व मेरा है
वही तो है...
मेरी जीवनदायिनी
कहीं ना कहीं इस जग की कर्णधारिणी
मेरी मां...
मां...