Monday, May 18, 2009

अनोखापन...


जीवन के इस दौर में
कई राह अनोखी है
भीड को चीरती हर एक
तन्हाई अनोखी है
कहीं शोरगुल का समां है
तो वहीं खामोशी की खुमारी अनोखी है
खुशियों के काफिले में
पांव पसारती गम की परछाई अनोखी है
विश्वास की परम्परा में
शकों की गुंजाइश अनोखी है
मधुर शब्दों की फैलती मिठास में
कटु लफ़्जों की चुभन अनोखी है
हर पल से दि्खती उम्मीद की किरण में
नाउम्मीदगी की वो धुंध अनोखी है
हर नये सवेरे की उजली शिखा मे
कुचली शिखा की कालिमा अनोखी है
सफलता की ऊंचाईयों में
विफलता की एक दल-दल भी अनोखी है
मिलन की ठंडी बयार में
वियोग की वो उमस अनोखी है
और जीवन के सलोने रूप में
मौत कि वो कुरूपता भी तो अनोखी है
तभी तो...
जीवन के इस दौर मे दिखती
हर राह अनोखी है.

2 comments:

  1. beta nidhi..app toh poetess bann gayi...the poem is so nice telling different colors of life...guud one yaar

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  2. Gud one but u know i always hated this pessimism in ur poems...but still it is a gud one....

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