Tuesday, March 22, 2011

प्रकृति और नारी...


मै प्रकृति और नारी मे साम्य कह्ती हू, क्योकि दोनो का सानिध्य प्राप्त है मुझे
मै दोनो मै रची बसी, दोनो के साथ रह्ती हू

लगती दोनो सखी सहेली
सुख मे भी शामिल, दुख मे भी नही अकेली

नारी की मुस्कान प्रकृति मे मोती बन चमके
औरा ऑसू उसके ओस की बूदो से दमके
चलाये प्रकृति भी अंधड़ जब सहनशीला का क्रोध भड़के
और बना दे पर्दा वन्यलता का जब छिपना चाहे लज्जाशीला डर के

और मै...
दोनो के मन को पढा करती हू
मै दोनो मै रची बसी, दोनो के साथ रह्ती हू

प्रकृति मा बनी बीज की तो नारी मातृत्व जानी
नारी स्वभाव से ही प्रेरित हो मन्द पवन ने बहने की ठानी
सर्दी की कुनकुनी धूप सुनाये कोमलता की कहानी
सन्ग सिखाना चाहे बहते पानी सी रवानी

और मै...
दोनो के चरित्र गढा करती हू
मै दोनो मै रची बसी, दोनो के साथ रह्ती हू

2 comments:

  1. सुन्दर कविता लिखी है आपने निधि!
    आपके शहर मेरठ से हूँ और आपका अपने ब्लॉग amitaag.blogspot.com पर स्वागत करता हूँ.
    आपकी मूल्यवान टिपण्णी का इंतज़ार रहेगा.
    -अमित

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  2. आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज के ब्लॉग बुलेटिन - आर्यभट्ट जयंती - गणितज्ञ, खगोलशास्त्री, वैज्ञानिक (४७६-५५० ईस्वी ) पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |

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