Monday, March 30, 2009

मां...


क़ुहासे की ऊची दीवारो से झाकती एक छवि
धुन्ध की मोटी परत को तोड़्ती एक किरण
परेशानियो की तेज धार को चीरती एक नैया
आग की तेज तपन को हटाती एक ठन्डक
आन्सू भरी आन्खो मे उभरी सांत्वना की एक तस्वीर
हर दर्द की आह के पीछे खुशी की आवाज
हर परेशानी मे लड़ने की हिम्मत
हर गलत कदम के पीछे सही राह दिखाती एक पथ प्रदर्शक
हर सुख दुख को बांटती एक सखी
जीवन पाठ सिखाती एक गुरु
हां...
हर तकदीर से झांकती एक तस्वीर है
मां...
जिसकी हर दुआ मे बसी मेरी खुशी है
जिसकी आंखो से झलकती तस्वीर मेरी है
जिसकी छवि मे दिखता अस्तित्व मेरा है
वही तो है...
मेरी जीवनदायिनी
कहीं ना कहीं इस जग की कर्णधारिणी
मेरी मां...
मां...

2 comments:

  1. its really very appreciating poem my dear.u have to proud that u got such art .i think that u r able to define /highlight any thing through ur poem.keep it up .all the best.

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  2. I nvr said tis but u r a gr8 poet Nidhi... keeep going...

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