Wednesday, April 1, 2009

आशा और तमन्ना


बुलन्दियों के उस आसमान को छूने की आशा है
खुद को उस मुकाम पर पाने की इच्छा है
जहां ख्वाबों मे भी लोग जा नही पाते
परिन्दे भी जहां तक उड नही पाते
ऐसी ऊंचाईयों पर अपना जहां बनाने की इच्छा है
बान्ध कर अनोखे प्रयासों की डोर
देख कर अब उन ऊंचाईयों की ओर
एक सलोना जहां बनाने की इच्छा है
पर इस इच्छा मे एक तमन्ना का भी हिस्सा है
जिसमें इस घरोंदे को समुद्र की गहराइयो से सजाने की आशा है
जानती हूं दोनो मे एक प्रबल विमुखता है
पर दोनो एक दूजे का ही तो हिस्सा है
बिना एक के दूजा अधूरा है
करने को इसे पूरा,
बांधनी है प्रयासो की एक ऐसी डोर
ज कर सके खड़ा एक दर्पण ऐसा
जिसमे दिखे धरती और गगन एक ओर

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