Wednesday, April 1, 2009

खुशनसीबी


अपने भावों को क्या कोई आज तक शब्दों में ढाल पाया है?
हर इच्छा कोइ अप्नी क्या कोई जाहिर कर पाया है?
हर चाह को दिल की, क्या कोई जता पाया है?
हां, हर किसी ने भावों की रूपरेखा को चेहरे पर उबारा है
पर कितने खुशनसीबों ने कण्ठ से अपनी जुबां पर इसे उतारा है?
हर किसी ने इच्छा को अपनी,
ऑंखों की चमक या नेत्रों के अश्कों मे ढाला है
पर कितने खुशनसीबों ने इसको जीवन के पलों में ढूंढ निकाला है?
दिल मे हुई हर आहट को हर किसी ने स्वयम मे गूंजता पाया है
पर कितने खुशनसीबों ने इसको जिन्दगी की धुन के संग बजाया है?
और ऐ जिन्दगी जीने वालों...
जरा उन खुशनसीबों को ढूंढ निकालो
जिन्होने जिन्दगी की इस खुशनसीबी को उम्र भर सम्भाला है

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